Tuesday, February 8, 2011

वक्त से डर के रहने मेँ समझदारी भी है

वक्त से डर के रहने मेँ समझदारी भी है
वो कल राजा था
आज भिखारी भी है
औरोँ के काम आना है अच्छी बात है
मगर
इसमेँ छिपी एहसान की बिमारी भी है
वो धनवान है एक जवान बेटी का बाप
एक गरीब केँ दर का वो भिखारी भी है
बुरी नजर की आग लगाई तो खुद जलोगे
घर मेँ बहन और बेटी तुम्हारी भी है
वक्त की बाजी मेँ लगे हो खुद दांव पर
तुमसे बङा "सुमीत" कोई जुआरी भी है॥

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