उन्हें सब कुछ समझा
होश आया तो वो पास नहीं थे
समझा था जिन्हें ख़ास, वो साथ नहीं थे
गलत फहमी में जी रहा था
मेरे गुनाह का दोष, निरंतर उनको दे रहा था
उनसे माफ़ी चाहता हूँ
इसी बहाने उनका, दीदार चाहता हूँ
शायद फिर मुस्कराएँ
इस बार तो मुझे अपना बनाएँ
होश आया तो वो पास नहीं थे
समझा था जिन्हें ख़ास, वो साथ नहीं थे
गलत फहमी में जी रहा था
मेरे गुनाह का दोष, निरंतर उनको दे रहा था
उनसे माफ़ी चाहता हूँ
इसी बहाने उनका, दीदार चाहता हूँ
शायद फिर मुस्कराएँ
इस बार तो मुझे अपना बनाएँ
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